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एम ए सेमेस्टर-1 - गृह विज्ञान - चतुर्थ प्रश्नपत्र - अनुसंधान पद्धति

सरल प्रश्नोत्तर समूह

प्रकाशक : सरल प्रश्नोत्तर सीरीज प्रकाशित वर्ष : 2023
पृष्ठ :172
मुखपृष्ठ : पेपरबैक
पुस्तक क्रमांक : 2696
आईएसबीएन :0

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एम ए सेमेस्टर-1 - गृह विज्ञान - चतुर्थ प्रश्नपत्र - अनुसंधान पद्धति

प्रश्न- प्रयोगात्मक शोध का अर्थ, विशेषताएँ, गुण तथा सीमाएँ बताइए।

उत्तर -

प्रयोगात्मक शोध का अर्थ

प्रयोगात्मक शोध अभिकल्प को परीक्षात्मक अनुसन्धान अभिकल्प भी कहा जाता है। प्रायोगिक शोध अभिकल्प प्रयोगशाला में प्रयोग की भाँति दो चरों के परस्पर सम्बन्ध का अध्ययन करने के लिये निर्मित किया जाता है। इससे एक अनियन्त्रित समूह बनाया जाता है तथा दूसरा प्रायोगिक समूह। नियन्त्रित समूह को अप्रमाणित और अपरिवर्तित रखकर प्रायोगिक समूह में जिसे कारक का प्रभाव देखना है उसका प्रगटीकरण (exposure) समूह में किया जाता है। वैज्ञानिक पद्धति के सभी चरणों को अपनाया जाता है। विभिन्न विद्वानों द्वारा प्रयोगात्मक शोध अभिकल्प को निम्न प्रकार परिभाषित किया गया है-

(i) जहोदा (Jahoda) के अनुसार, “व्यापक अर्थों में एक प्रयोग को प्रमाण के संकलन को व्यवस्थित करन की प्रणाली माना जा सकता है जिसमें किसी कल्पना की सार्थकता के विषय में निष्कर्ष निकाला जा सके।"

(ii) ग्रीनवुड (Greenwood) के अनुसार,“प्रयोग कार्य-कारण सम्बन्ध को व्यक्त करने वाली उपकल्पना के परीक्षण की विधि है जिसमें नियन्त्रित परिस्थितियों के कार्य-कारण सम्बन्धों का मूल्यांकन करते हैं।"

 

प्रयोगात्मक शोध की विशेषताएँ

प्रयोगात्मक शोध की प्रमुख चार विशेषताएँ होती हैं -

(1) नियन्त्रण - यह प्रयोगात्मक अनुसन्धान की एक प्रमुख विशेषता है। प्रयोगात्मक अनुसन्धान में हमें स्वतन्त्र चर का प्रभाव आश्रित चर पर देखना होता है। विश्वसनीय परिणाम पाने के लिए बाह्य चरों का नियंत्रण अति आवश्यक होता है। नियंत्रण कई विधियों से किया जा सकता है।

(i) विलोपन (Elimination) - बाह्य चरों को नियन्त्रित करने का सबसे आसान तरीका है कि इन चरों को अध्ययन से निष्कासित कर दिया जाये ताकि आश्रित चर पर इसके प्रभाव को विलोपित किया जा सके। यदि बुद्धि बाह्य चर है तो दोनों समूहों में समान बुद्धि लब्धि (IQ) के प्रयोज्यों को रखकर इस चर को नियन्त्रित किया जा सकता है।

(ii) यादृच्छिकीकरण (Randomization) - यादृच्छिकीकरण एक ऐसी विधि है जिसके द्वारा सभी बाह्य चरों समूह तथा नियन्त्रित समूह असमतुल्य हो सकते हैं लेकिन फिर भी उनमें समान होने की प्रायिकता बहुत अधिक होती है। जहाँ तक सम्भव हो प्रयोगात्मक समूह में यादृच्छिक ढंग से प्रयोज्यों को आबंटित किया जाना चाहिए तथा यादृच्छिक ढंग से आबंटित स्थितियों को प्रयोगात्मक समूह को दिया जाना चाहिए।

(iii) बाह्य चर को स्वतन्त्र चर के रूप में बदलना (To Convert the Extraneous Variable into a Independent Variables) - बाह्य चरों को नियन्त्रित करने का एक तरीका यह भी है कि जिस बाह्य चर को हमें नियन्त्रित करना है उसको हम अपने अध्ययन में शामिल कर लें। यदि आयु या बुद्धि हमारे अध्ययन में बाह्य चर है तो हम इन चरों को भी अपने अध्ययन में शामिल कर लें। इन चरों (बुद्धि और आयु) का प्रभाव आश्रित चर पर देखेंगे तथा इन चरों की आपस में अन्तःक्रिया का प्रभाव क्या होगा? यह भी अध्ययन किया जायेगा।

(iv) प्रयोज्यों को सुमेलित करना (Matching Cases) - इस विधि में बाह्य चरों को नियन्त्रित करने में ऐसे प्रयोज्यों को लिया जाता है जो एक समान विशेषताएँ रखते हैं तथा इनमें से कुछ को प्रयोगात्मक समूह में तथा कुछ को नियन्त्रित समूह में रखा जाता है। इस विधि की अपनी कुछ सीमाएँ हैं जैसे, एक से अधिक चरों के आधार पर प्रयोज्यों को सुमेलित करना एक कठिन कार्य है। बहुत से प्रयोज्यों को अध्ययन से अलग करना पड़ता है क्योंकि वह सुमेलित नहीं हो पाते हैं।

(v) समूहों को सुमेलित करना (Group Matching) - इस विधि से बाह्य चरों को नियन्त्रित करने में प्रयोगात्मक समूह तथा नियन्त्रित समूह में प्रयोज्यों को इस प्रकार आबंटित किया जाता है कि जहाँ तक सम्भव हो दोनों समूहों का मध्यमान तथा प्रसरण लगभग समान हो।

(vi) सह प्रसरण विश्लेषण (Analysis of Covariance) - बाह्य चरों के आधार पर प्रयोगात्मक समूह तथा नियन्त्रित समूह में होने वाले प्रारम्भिक अन्तर को सांख्यिकीय विधि से दूर किया जाता है।

(2) जोड़-तोड़ प्रयोगात्मक अनुसन्धान की प्रमुख विशेषता है - स्वतन्त्र चर में जोड़-तोड़ करके उसके प्रभाव को आश्रित चर पर देखा जाता है। स्वतन्त्र चर के उदाहरण हैं आयु, सामाजिक- आर्थिक स्तर, कक्षा का वातावरण, व्यक्तित्व की विशेषता आदि। इनमें से कुछ चरों में शोधकर्ता के द्वारा परिवर्तन किया जा सकता है जैसे, शिक्षण विधि द्वारा पढ़ाने का विषय आदि। कुछ चरों में सीधे परिवर्तन न करके चयन द्वारा परिवर्तन किया जाता है, जैसे आयु, बुद्धि आदि। शोधकर्ता एक समय में एक या एक से अधिक स्वतन्त्र चरों में जोड़-तोड़ कर सकता है।

(3) अवलोकन - प्रयोगात्मक अनुसन्धान में स्वतन्त्र चर में जोड़-तोड़ करके उसके प्रभाव को आश्रित चर पर देखा जाता है। आश्रित चर पर पड़ने वाले प्रभाव को सीधे नहीं देखा जा सकता। शैक्षिक उपलब्धि तथा अधिगम आदि आश्रित चर हैं, इनको सीधे नहीं देखा जा सकता है। शैक्षिक उपलब्धि को परीक्षा में प्राप्त अंकों के अवलोकन के आधार पर देखा जायेगा।

(4) पुनरावृत्ति - प्रयोगात्मक अनुसन्धान में यदि सभी बाह्य चरों को नियन्त्रित करने का प्रयास किया जाये तथा प्रयोज्यों का आबंटन यादृच्छिक विधि से किया जाए तब भी बहुत से ऐसे कारण हो सकते हैं जो अध्ययन के प्रभावों को प्रभावित कर सकते हैं। पुनरावृत्ति के द्वारा इस तरह की समस्या का समाधान किया जा सकता है। यदि किसी प्रयोग में 15-15 प्रयोज्य प्रयोगात्मक तथा नियन्त्रित समूह में हैं तथा उनका आबंटन यादृच्छिक विधि से किया गया है तो यह एक प्रयोग न होकर 15 समानान्तर प्रयोग होते हैं। प्रत्येक जोड़े को अपने आप में एक प्रयोग माना जाता है।

प्रयोगात्मक शोध के गुण

प्रयोगात्मक शोध के लिए तीन गुण होना आवश्यक है जो-

(1) उपयुक्तता (Appropriateness) - एक अच्छे प्रयोगात्मक शोध के लिए यह आवश्यक है कि उसमें उपयुक्तता हो। उपयुक्ता से तात्पर्य शोध ऐसा हो जो अध्ययन के उद्देश्य तथा परिकल्पनाओं के अनुरूप हो, जिससे परिकल्पनाओं की जाँच सटीक रूप से की जा सके।
(2) नियन्त्रण ( Control) - प्रयोगात्मक शोध ऐसा हो जिसमें चरों तथा परिस्थितियों पर सुविधापूर्वक एवं वांछित मात्रा में नियन्त्रण किया जा सके, जिससे स्वतन्त्र चरों के आश्रित चरों पर पड़ने वाले प्रभावों का सुविधा से अध्ययन किया जा सके तथा बाह्य चरों के प्रभावों को दूर किया जा सके।
(3) वैधता (Validity) - प्रयोगात्मक शोध में वैधता होना आवश्यक है अर्थात् जितनी भी बार प्रयोग किया जाये वह समान परिणाम दें तथा प्रयोग के उद्देश्यों से ही प्रयोग का स्वरूप परिलक्षित हो।

प्रयोगात्मक शोध की सीमायें

प्रयोगात्मक शोध की सीमायें निम्न प्रकार हैं- 

(1) प्रयोगात्मक प्रणाली में नियन्त्रण परिस्थिति की स्वाभाविकता में परिवर्तन कर देते हैं और अस्वाभाविक वातावरण में स्वाभाविक प्रतिक्रिया नहीं हो सकती। प्रयोगशाला में तो प्रयोज्य एक अन्य भी विशेष वातावरण का अनुभव करने लगता है जिससे व्यवहार की स्वाभाविकता नष्ट हो जाती है।
(2) प्रयोगात्मक प्रणाली में अध्ययन के दो समूहों का चुनाव करना पड़ता है जिनका प्रत्येक दृष्टि से समान होना आवश्यक है। परन्तु समूहों का प्रत्येक दृष्टि से समान होना कठिन है।
(3) प्रयोगात्मक प्रणाली में निश्चित निष्कर्ष पर पहुँचने के लिए यह आवश्यक है कि केवल स्वतन्त्र चर ही क्रियाशील हों तथा अन्य कारकों पर नियन्त्रण हो जिससे सही एवं उचित निष्कर्ष प्राप्त हो सकें। परन्तु वास्तव में सामाजिक घटनाओं से सम्बन्धित चरों का नियन्त्रण बड़ा कठिन कार्य है।

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    अनुक्रम

  1. प्रश्न- अनुसंधान की अवधारणा एवं चरणों का वर्णन कीजिये।
  2. प्रश्न- अनुसंधान के उद्देश्यों का वर्णन कीजिये तथा तथ्य व सिद्धान्त के सम्बन्धों की व्याख्या कीजिए।
  3. प्रश्न- शोध की प्रकृति पर प्रकाश डालिए।
  4. प्रश्न- शोध के अध्ययन-क्षेत्र का विस्तारपूर्वक वर्णन कीजिए।
  5. प्रश्न- 'वैज्ञानिक पद्धति' क्या है? वैज्ञानिक पद्धति की विशेषताओं की व्याख्या कीजिये।
  6. प्रश्न- वैज्ञानिक पद्धति के प्रमुख चरणों का वर्णन कीजिए।
  7. प्रश्न- अन्वेषणात्मक शोध अभिकल्प की व्याख्या करें।
  8. प्रश्न- अनुसन्धान कार्य की प्रस्तावित रूपरेखा से आप क्या समझती है? इसके विभिन्न सोपानों का वर्णन कीजिए।
  9. प्रश्न- शोध से क्या आशय है?
  10. प्रश्न- शोध की विशेषतायें बताइये।
  11. प्रश्न- शोध के प्रमुख चरण बताइये।
  12. प्रश्न- शोध की मुख्य उपयोगितायें बताइये।
  13. प्रश्न- शोध के प्रेरक कारक कौन-से है?
  14. प्रश्न- शोध के लाभ बताइये।
  15. प्रश्न- अनुसंधान के सिद्धान्त का महत्व क्या है?
  16. प्रश्न- वैज्ञानिक पद्धति के आवश्यक तत्त्व क्या है?
  17. प्रश्न- वैज्ञानिक पद्धति का अर्थ लिखो।
  18. प्रश्न- वैज्ञानिक पद्धति के प्रमुख चरण बताओ।
  19. प्रश्न- गृह विज्ञान से सम्बन्धित कोई दो ज्वलंत शोध विषय बताइये।
  20. प्रश्न- शोध को परिभाषित कीजिए तथा वैज्ञानिक शोध की कोई चार विशेषताएँ बताइये।
  21. प्रश्न- गृह विज्ञान विषय से सम्बन्धित दो शोध विषय के कथन बनाइये।
  22. प्रश्न- एक अच्छे शोधकर्ता के अपेक्षित गुण बताइए।
  23. प्रश्न- शोध अभिकल्प का महत्व बताइये।
  24. प्रश्न- अनुसंधान अभिकल्प की विषय-वस्तु लिखिए।
  25. प्रश्न- अनुसंधान प्ररचना के चरण लिखो।
  26. प्रश्न- अनुसंधान प्ररचना के उद्देश्य क्या हैं?
  27. प्रश्न- प्रतिपादनात्मक अथवा अन्वेषणात्मक अनुसंधान प्ररचना से आप क्या समझते हो?
  28. प्रश्न- 'ऐतिहासिक उपागम' से आप क्या समझते हैं? इस उपागम (पद्धति) का प्रयोग कैसे तथा किन-किन चरणों के अन्तर्गत किया जाता है? इसके अन्तर्गत प्रयोग किए जाने वाले प्रमुख स्रोत भी बताइए।
  29. प्रश्न- वर्णात्मक शोध अभिकल्प की व्याख्या करें।
  30. प्रश्न- प्रयोगात्मक शोध अभिकल्प क्या है? इसके विविध प्रकार क्या हैं?
  31. प्रश्न- प्रयोगात्मक शोध का अर्थ, विशेषताएँ, गुण तथा सीमाएँ बताइए।
  32. प्रश्न- पद्धतिपरक अनुसंधान की परिभाषा दीजिए और इसके क्षेत्र को समझाइए।
  33. प्रश्न- क्षेत्र अनुसंधान से आप क्या समझते है। इसकी विशेषताओं को समझाइए।
  34. प्रश्न- सामाजिक सर्वेक्षण का अर्थ व प्रकार बताइए। इसके गुण व दोषों की विवेचना कीजिए।
  35. प्रश्न- सामाजिक सर्वेक्षण से आप क्या समझते हैं? इसके प्रमुख प्रकार एवं विशेषताएँ बताइये।
  36. प्रश्न- सामाजिक अनुसन्धान की गुणात्मक पद्धति का वर्णन कीजिये।
  37. प्रश्न- क्षेत्र-अध्ययन के गुण लिखो।
  38. प्रश्न- क्षेत्र-अध्ययन के दोष बताओ।
  39. प्रश्न- क्रियात्मक अनुसंधान के दोष बताओ।
  40. प्रश्न- क्षेत्र-अध्ययन और सर्वेक्षण अनुसंधान में अंतर बताओ।
  41. प्रश्न- पूर्व सर्वेक्षण क्या है?
  42. प्रश्न- परिमाणात्मक तथा गुणात्मक सर्वेक्षण का अर्थ लिखो।
  43. प्रश्न- सामाजिक सर्वेक्षण का अर्थ बताकर इसकी कोई चार विशेषताएँ बताइए।
  44. प्रश्न- सर्वेक्षण शोध की उपयोगिता बताइये।
  45. प्रश्न- सामाजिक सर्वेक्षण के विभिन्न दोषों को स्पष्ट कीजिए।
  46. प्रश्न- सामाजिक अनुसंधान में वैज्ञानिक पद्धति कीक्या उपयोगिता है? सामाजिक अनुसंधान में वैज्ञानिक पद्धति की क्या उपयोगिता है?
  47. प्रश्न- सामाजिक सर्वेक्षण के विभिन्न गुण बताइए।
  48. प्रश्न- सामाजिक सर्वेक्षण तथा सामाजिक अनुसंधान में अन्तर बताइये।
  49. प्रश्न- सामाजिक सर्वेक्षण की क्या सीमाएँ हैं?
  50. प्रश्न- सामाजिक सर्वेक्षण की सामान्य विशेषताओं का वर्णन कीजिए।
  51. प्रश्न- सामाजिक सर्वेक्षण की क्या उपयोगिता है?
  52. प्रश्न- सामाजिक सर्वेक्षण की विषय-सामग्री बताइये।
  53. प्रश्न- सामाजिक अनुसंधान में तथ्यों के संकलन का महत्व समझाइये।
  54. प्रश्न- सामाजिक सर्वेक्षण के प्रमुख चरणों की विवेचना कीजिए।
  55. प्रश्न- अनुसंधान समस्या से क्या तात्पर्य है? अनुसंधान समस्या के विभिन्न स्रोतक्या है?
  56. प्रश्न- शोध समस्या के चयन एवं प्रतिपादन में प्रमुख विचारणीय बातों का वर्णन कीजिये।
  57. प्रश्न- समस्या का परिभाषीकरण कीजिए तथा समस्या के तत्वों का विश्लेषण कीजिए।
  58. प्रश्न- समस्या का सीमांकन तथा मूल्यांकन कीजिए तथा समस्या के प्रकार बताइए।
  59. प्रश्न- समस्या के चुनाव का सिद्धान्त लिखिए। एक समस्या कथन लिखिए।
  60. प्रश्न- शोध समस्या की जाँच आप कैसे करेंगे?
  61. प्रश्न- अनुसंधान समस्या के प्रकार बताओ।
  62. प्रश्न- शोध समस्या किसे कहते हैं? शोध समस्या के कोई चार स्त्रोत बताइये।
  63. प्रश्न- उत्तम शोध समस्या की विशेषताएँ बताइये।
  64. प्रश्न- शोध समस्या और शोध प्रकरण में अंतर बताइए।
  65. प्रश्न- शैक्षिक शोध में प्रदत्तों के वर्गीकरण की उपयोगिता क्या है?
  66. प्रश्न- समस्या का अर्थ तथा समस्या के स्रोत बताइए?
  67. प्रश्न- शोधार्थियों को शोध करते समय किन कठिनाइयों का सामना पड़ता है? उनका निवारण कैसे किया जा सकता है?
  68. प्रश्न- समस्या की विशेषताएँ बताइए तथा समस्या के चुनाव के अधिनियम बताइए।
  69. प्रश्न- परिकल्पना की अवधारणा स्पष्ट कीजिये तथा एक अच्छी परिकल्पना की विशेषताओं का वर्णन कीजिये।
  70. प्रश्न- एक उत्तम शोध परिकल्पना की विशेषताएँ बताइये।
  71. प्रश्न- उप-कल्पना के परीक्षण में होने वाली त्रुटियों के बारे में उदाहरण सहित बताइए तथा इस त्रुटि से कैसे बचाव किया जा सकता है?
  72. प्रश्न- परिकल्पना या उपकल्पना से आप क्या समझते हैं? परिकल्पना कितने प्रकार की होती है।
  73. प्रश्न- उपकल्पना के स्रोत, उपयोगिता तथा कठिनाइयाँ बताइए।
  74. प्रश्न- उत्तम परिकल्पना की विशेषताएँ लिखिए।
  75. प्रश्न- परिकल्पना से आप क्या समझते हैं? किसी शोध समस्या को चुनिये तथा उसके लिये पाँच परिकल्पनाएँ लिखिए।
  76. प्रश्न- उपकल्पना की परिभाषाएँ लिखो।
  77. प्रश्न- उपकल्पना के निर्माण की कठिनाइयाँ लिखो।
  78. प्रश्न- शून्य परिकल्पना से आप क्या समझते हैं? उदाहरण सहित समझाइए।
  79. प्रश्न- उपकल्पनाएँ कितनी प्रकार की होती हैं?
  80. प्रश्न- शैक्षिक शोध में न्यादर्श चयन का महत्त्व बताइये।
  81. प्रश्न- शोधकर्त्ता को परिकल्पना का निर्माण क्यों करना चाहिए।
  82. प्रश्न- शोध के उद्देश्य व परिकल्पना में क्या सम्बन्ध है?
  83. प्रश्न- महत्वशीलता स्तर या सार्थकता स्तर (Levels of Significance) को परिभाषित करते हुए इसका अर्थ बताइए?
  84. प्रश्न- शून्य परिकल्पना में विश्वास स्तर की भूमिका को समझाइए।

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